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News PointBlack Fungus: आंख, नाक और जबड़े पर काले फंगस का हमला, सरकार ने बताए लक्षण और एहतियाती उपाय By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब कोरोना के कहर के दौरान काले फंगस म्यूकोरिया के बढ़ते मामले का पता लगाने की कोशिश की जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने लोगों को काले कवक के शुरुआती लक्षणों को पहचानने और इससे बचने की सलाह दी है। सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में हैं। हर्षवर्धन ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक पोस्ट में कहा कि जागरूकता और शुरुआती लक्षणों को पहचानकर खतरे से बचा जा सकता है।imageMucormycosis क्या है- Mucormycosis एक कवक संक्रमण है जो कोरोना वायरस के कारण होता है। कोविड-19 टास्क फोर्स के विशेषज्ञों के अनुसार, जो पहले से ही कुछ बीमारियों से जूझ रहे हैं और जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है, यह आसानी से फैलता है क्योंकि ऐसे लोगों में संक्रमण से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है।किसे है खतरा- इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, कुछ खास स्थितियों में ही कोरोना के मरीजों में म्यूकोरैमिकोसिस होने का खतरा ज्यादा होता है। अनियंत्रित मधुमेह के मामले में, स्टेरॉयड कमजोर प्रतिरक्षा, लंबे समय तक आईसीयू या अस्पताल में भर्ती, कोई अन्य बीमारी, अंग प्रत्यारोपण, कैंसर या वोरिकोनाज़ोल थेरेपी (गंभीर फंगल संक्रमण का उपचार) काले कवक के जोखिम को बढ़ा सकता है।imageलक्षण – काले फंगस के मुख्य लक्षण आंखों में लालिमा या दर्द, बुखार, सिरदर्द, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी, खून बहना या मानसिक स्थिति में बदलाव है। इन लक्षणों की बारीकी से निगरानी की जानी चाहिए।यह कैसे फैलता है – विशेषज्ञों के अनुसार, व्यक्ति वायुजनित संक्रमणों के कारण फंगल संक्रमण का शिकार हो सकता है। रोगी की त्वचा पर काला फंगस भी विकसित हो सकता है। यह त्वचा पर खरोंच, घर्षण या सूजन के कारण शरीर में प्रवेश कर सकता है।म्यूकोर्मिकोसिस से कैसे पढ़ें- काले फंगस से बचाव के लिए धूल-धूसरित जगहों पर मास्क लगाएं। मिट्टी, काई या खाद जैसी वस्तुओं के पास जाते समय जूते, दस्ताने, पूरी बाजू पहनें। साफ-सफाई पर ध्यान दें। मधुमेह नियंत्रण, इम्यूनोमॉड्यूलेटिंग दवाओं या स्टेरॉयड का उपयोग कम से कम करें।काली फफूंदीरोकथाम के लिए क्या करें- हाइपरग्लेसेमिया (रक्त शर्करा) को नियंत्रित करें। कोविड-19 से ठीक होने के बाद रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी करते रहें। अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार स्टेरॉयड का प्रयोग करें। ऑक्सीजन थेरेपी के दौरान ह्यूमिडिफायर के लिए साफ पानी का इस्तेमाल करें। आवश्यक होने पर ही एंटीबायोटिक्स या एंटीफंगल दवाओं का प्रयोग करें।imageक्या न करें- काले फंगस से बचाव के लिए इसके लक्षणों को बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें। नाक की भीड़ के सभी मामलों को बैक्टीरियल साइनसिसिस के रूप में गलत न समझें। ऐसी गलती न करें, खासकर कोविड-19 और इम्यूनोसप्रेशन के मामले में।फंबाल वनिता महिला आश्रमगल एटियलजि के बारे में पता लगाने के लिए KOH परीक्षण और माइक्रोस्कोपी लेने से न डरें। अगर डॉक्टर आपको तुरंत इलाज कराने के लिए कहें तो इसे नजरअंदाज न करें। ठीक होने के बाद भी बताए गए लक्षणों को नज़रअंदाज न करें क्योंकि ज्यादातर मामलों में, ठीक होने के एक हफ्ते या एक महीने के भीतर फंगल इंफेक्शन की भी पुनरावृत्ति देखी गई है।उल्लेखनीय है कि अब महाराष्ट्र के अलावा अन्य राज्यों में म्यूकोमाइकोसिस के मामले बढ़ रहे हैं। वर्तमान में गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान में काले कवक के मामले सामने आ रहे हैं। इससे मरीज की आंख, नाक और जबड़े को काफी नुकसान हो सकता है।


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Black Fungus: आंख, नाक और जबड़े पर काले फंगस का हमला, सरकार ने बताए लक्षण और एहतियाती उपाय

कोरोना के कहर के दौरान काले फंगस म्यूकोरिया के बढ़ते मामले का पता लगाने की कोशिश की जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने लोगों को काले कवक के शुरुआती लक्षणों को पहचानने और इससे बचने की सलाह दी है। सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में हैं। हर्षवर्धन ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक पोस्ट में कहा कि जागरूकता और शुरुआती लक्षणों को पहचानकर खतरे से बचा जा सकता है।image

Mucormycosis क्या है- Mucormycosis एक कवक संक्रमण है जो कोरोना वायरस के कारण होता है। कोविड-19 टास्क फोर्स के विशेषज्ञों के अनुसार, जो पहले से ही कुछ बीमारियों से जूझ रहे हैं और जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है, यह आसानी से फैलता है क्योंकि ऐसे लोगों में संक्रमण से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है।
किसे है खतरा- इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, कुछ खास स्थितियों में ही कोरोना के मरीजों में म्यूकोरैमिकोसिस होने का खतरा ज्यादा होता है। अनियंत्रित मधुमेह के मामले में, स्टेरॉयड कमजोर प्रतिरक्षा, लंबे समय तक आईसीयू या अस्पताल में भर्ती, कोई अन्य बीमारी, अंग प्रत्यारोपण, कैंसर या वोरिकोनाज़ोल थेरेपी (गंभीर फंगल संक्रमण का उपचार) काले कवक के जोखिम को बढ़ा सकता है।image

लक्षण – काले फंगस के मुख्य लक्षण आंखों में लालिमा या दर्द, बुखार, सिरदर्द, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी, खून बहना या मानसिक स्थिति में बदलाव है। इन लक्षणों की बारीकी से निगरानी की जानी चाहिए।

यह कैसे फैलता है – विशेषज्ञों के अनुसार, व्यक्ति वायुजनित संक्रमणों के कारण फंगल संक्रमण का शिकार हो सकता है। रोगी की त्वचा पर काला फंगस भी विकसित हो सकता है। यह त्वचा पर खरोंच, घर्षण या सूजन के कारण शरीर में प्रवेश कर सकता है।

म्यूकोर्मिकोसिस से कैसे पढ़ें- काले फंगस से बचाव के लिए धूल-धूसरित जगहों पर मास्क लगाएं। मिट्टी, काई या खाद जैसी वस्तुओं के पास जाते समय जूते, दस्ताने, पूरी बाजू पहनें। साफ-सफाई पर ध्यान दें। मधुमेह नियंत्रण, इम्यूनोमॉड्यूलेटिंग दवाओं या स्टेरॉयड का उपयोग कम से कम करें।

काली फफूंदी
रोकथाम के लिए क्या करें- हाइपरग्लेसेमिया (रक्त शर्करा) को नियंत्रित करें। कोविड-19 से ठीक होने के बाद रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी करते रहें। अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार स्टेरॉयड का प्रयोग करें। ऑक्सीजन थेरेपी के दौरान ह्यूमिडिफायर के लिए साफ पानी का इस्तेमाल करें। आवश्यक होने पर ही एंटीबायोटिक्स या एंटीफंगल दवाओं का प्रयोग करें।image

क्या न करें- काले फंगस से बचाव के लिए इसके लक्षणों को बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें। नाक की भीड़ के सभी मामलों को बैक्टीरियल साइनसिसिस के रूप में गलत न समझें। ऐसी गलती न करें, खासकर कोविड-19 और इम्यूनोसप्रेशन के मामले में।


फंबाल वनिता महिला आश्रमगल एटियलजि के बारे में पता लगाने के लिए KOH परीक्षण और माइक्रोस्कोपी लेने से न डरें। अगर डॉक्टर आपको तुरंत इलाज कराने के लिए कहें तो इसे नजरअंदाज न करें। ठीक होने के बाद भी बताए गए लक्षणों को नज़रअंदाज न करें क्योंकि ज्यादातर मामलों में, ठीक होने के एक हफ्ते या एक महीने के भीतर फंगल इंफेक्शन की भी पुनरावृत्ति देखी गई है।

उल्लेखनीय है कि अब महाराष्ट्र के अलावा अन्य राज्यों में म्यूकोमाइकोसिस के मामले बढ़ रहे हैं। वर्तमान में गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान में काले कवक के मामले सामने आ रहे हैं। इससे मरीज की आंख, नाक और जबड़े को काफी नुकसान हो सकता है।

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सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।#भारतवर्ष की आशाओं व आकांक्षाओं के अनुरूप #आदरणीय #प्रधानमंत्री #श्री_नरेन्द्र_मोदी जी ने #कोरोना #वैक्सीन देश को समर्पित कर दी है। जिसके लिए सभी #देशवासियों को शुभकामनाएं तथा हमारे कोरोना वॉरियर्स का सहृदय #धन्यवाद। ये देश के लिए गर्व का विषय है कि वैश्विक इतिहास ने इतने बड़े स्तर का #टीकाकरण अभियान इससे पहले कभी नहीं देखा है। #दुनिया के सैंकड़ों देश ऐसे हैं जिनकी आबादी 3 #करोड़ से कम है और भारत वैक्सीनेशन के अपने पहले चरण में ही 3 करोड़ लोगों का टीकाकरण करने जा रहा है।इस उपलब्धि के लिए मैं भारत के सभी वैक्सीन वैज्ञानिक, हमारा मेडिकल सिस्टम, सभी डॉक्टर्स, नर्सिंग स्टॉफ सहित उन सभी #योद्धाओं का आभार व्यक्त करती हूं, जिनकी मेहनत व लगन ने कोरोना जैसी गंभीर संक्रामक बीमारी को जड़ से खत्म करने की दिशा में एक मिसाल पेश की है।#Vnita#IndiaFightsCorona #LargestVaccineDrive,

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महाराष्ट्रातल्या कोणत्याही शहराची, खरंतर परिस्थिती पाहाता देशातल्या कोणत्याही शहराची सद्यस्थिती आहे. तुम्ही अहमदनगरचा तो व्हीडिओ पाहिला असेल जिथे एकाच चितेवर सहा जणांना अग्नी दिला. किंवा देशाच्या कोणत्यातरी नदीच्या किनारी जमिनीवरच मृतदेह ठेवून त्याभोवती लाकडं रचून पेटवलेलंही पाहिलं असेल, अगदी परवा समोर आलेला लखनऊच्या स्मशानातला अनेक मृतदेह जळतानाचा व्हीडिओही नजरेसमोरून गेला असेल. तसाच माझा एक अनुभव.By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबकोव्हिडने मरणाऱ्या लोकांचे आकडे रोज समोर येतात, थोडं हळहळून, चुकचुकून सोडून देतो आपण, कामाला लागतो. दुसऱ्या दिवशी परत आकडे येतात. तेच घडतं, तोपर्यंत जोपर्यंत ही काळाची चाहूल तुमच्या घरात लागत नाही.अचानक आकडे फक्त आकडे न राहाता आपल्या जगण्याची धावपळ बनते. काहीतरी शाप असावा माणसाला की आपला माणूस मरत नाही तोवर काही सिरीयसली घ्यावंसच वाटत नाही. तशीच गर्दी बाहेर वाढत असते.आभाळच फाटलं त्याला कुठे कुठे ठिगळं लावणार असं माझी आजी म्हणायची.कोरोनाने मरणारा माणूस कसा मरतो माहितेय? श्वास कोंडून, की शेवटी त्याला जगण्यासाठी एक श्वास घेणं मुश्कील व्हावं. जो/जी गेले ते तर सुटतात, मागे राहिलेल्यांचं काय?जे कोरोनाने जातात ना त्यांचे जवळचे, रक्ताच्या नात्याचे सहसा त्याच आजाराने ग्रस्त असतात. काही तर हॉस्पिटलमध्येच असतात. आपल्या माणसाला शेवटचा निरोप द्यायलाही त्यांना येता येत नाही. मरण स्वस्त तर झालंच आहे, एकटंही झालंय.मी पाहिलंय स्मशानभूमीत. एकाशेजारी एक सहा-सात चिता जळत असतात आणि दर तिसऱ्या मिनीटाला एक बॉडी येत असते. माझ्या नात्यातली व्यक्ती गेली तेव्हा माझ्या शहरात कोरोनाने 40 मृत्यू झाले होते.सविस्तरच सांगायला हवं कसं होतं ते. तुमचं शहर मोठं असेल आणि तुम्ही शहरात दोन स्मशानभूमी असण्याइतके लकी (!) असाल तर एक स्मशानभूमी कोव्हिडसाठी राखीव असते. दिवसभरात गेलेल्या लोकांच्या बॉडी दुपारनंतर रिलीज व्हायला सुरूवात होते आणि आग धगधगायला लागते. शववाहिका येत असतात, चिता पेटत असतात. जो मेलाय त्याच्या जवळचं स्मशानभूमीत कोणीच नसतं. ते ऑलरेडी एकतर अॅडमिट असतात नाहीत क्वारंटाईन असतात. मेलेल्याला आग लावायला रक्ताचं नसतं कोणी.नवरा, बायको, संसार, मुलं कोणीच नसतात. माझ्या नातेवाईकाच्या बाबतीत असंच झालं. लांबची चार माणसं सोडून कोणीच नव्हतं. अग्नी कोणी दिला, कोणाच्या लक्षातही नाही. तरी जी माणसं आली त्यांचं कौतुक मानायला पाहिजे की ती आली तरी. नाहीतर महानगरपालिकेची माणसं कुठे जाळतात, कशी जाळतात पत्ता नाही लागत. त्यांना तरी का दोष द्यावा? संपत नाहीये मृत्यूचा खेळ. मेलेल्या माणसाला प्लास्टिकमध्ये गुंडाळलेलं असतं, घरी आणण्याचा प्रश्नच नसतो. थेट स्मशानात नेतात. जाळण्यासाठीही टोकन घ्यावं लागतं. काही ठिकाणी 24-36 तासांचा वेटिंग पीरियड आहे म्हणे. आमच्या माणसाला निदान स्मशानात आणल्या आणल्या आग नशिबी आली.हॉस्पिटलमध्ये माणूस गेला रे गेला की त्याला बेडवरून उतरवायची घाई सुरू होते. रडायला तरी कोणाला आणि किती वेळ असणार? रिकामा (!) झालेला बेड बाहेर जगण्या-मरण्याच्या अध्येमध्ये टांगलेल्या माणसाला द्यायचा असतो. Life should trump death.कमीत कमी ज्या जवळच्या माणसांना आपल्या माणसांचे अंतिम संस्कार करता येतात ते नशीबवान (!) म्हणायचे. खांदा द्यायचा नसतोच, पण निदान अग्नी द्यायला, शेवटचा निरोप द्यायला चार माणसं यावीत म्हणून प्रयत्नांची पराकाष्ठा करावी लागते. कोव्हिडने गेलेल्या माणसाचे अंतिम संस्कार करायला कोण परकी माणसं येणार? तरी काही येतात, घाबरत घाबरत का होईना कसेबसे सोपस्कार पार पडतात.एका पत्रकार मित्राने सांगितलेला किस्सा. त्याचे वडील गेले मागच्या वर्षी कोरोनाने, लहानशा गावात. खांदा द्यायला माणूस नव्हता. याने एकट्याने खांद्यावर बॉडी नेऊन चितेवर ठेवली, अग्नी दिला आणि चिता शांत व्हायची वाट पाहात बसला. एकटाच.आपला माणूस मरतो तेव्हा काय होतं माहितेय? कोणी नसतं तिथे... उद्या अस्थी गोळा करायला कोण येणार, पुन्हा ही रिस्क कोण घेणार म्हणून तू-तू-मी-मी चालत असते. पुढचे तुमच्या आठवणीत असतील एखाद्या चांगल्या माणसाच्या मयतीला आलेली शेकडो माणसं. इथे शेकडो माणसंच मृत्यूच्या दारात उभी असतात. ब्राझीलमधला एक फोटो पाहिला काही दिवसांपूर्वी. कोव्हिड वॉर्डमध्ये अॅडमिट असलेल्या पेशंटचा हात गरम पाणी भरलेल्या दोन रबरी ग्लोव्हमध्ये ठेवला आहे. माणसाचा स्पर्शच नाही तरी काहीतरी तरी जाणीव असावी म्हणून. इतका एकटेपणा असतो.हा मेल्यानंतरी पाठ सोडत नाही. जो मेलेल्यासाठी रडतोय त्याचीही पाठ हा एकटेपणा सोडत नाही. ना मेलेल्याला खांदा देता येतो, ना मांडी. ना त्यांच्या जाण्यावरून कोणाच्या गळ्यात पडून धाय मोकलून रडता येतं.बाल वनिता महिला आश्रमकोणी रडत तर खांद्यावर हात टाकून सांत्वन करायला कोणी पुढे येत नाही. फेसशिल्ड, मास्कमध्ये लपलेले चेहरे. दोन-दोन मास्क लावल्यामुळे जड झालेला श्वास आणि आगीच्या धगीमुळे लागलेल्या घामाच्या धारा यात अश्रू कुठे वाहून जातात काहीच कळत नाही. मुळात कोण कोणासाठी रडतंय, त्याहीपेक्षा गेलेल्या माणसासाठी रडायला इथे कोणी आहे तरी का हे कळायला जागा नसते.या एकटेपणाचं काय करावं?समोर जळणाऱ्या सहा-सात चितांच्या ज्वाळात नंतर हेही कळत नाही की आपल्या माणसाला कुठे अग्नी दिला होता. चौथऱ्यावर गेलं की धग लागते फक्त, सगळीकडून जळणाऱ्या चितांची. स्मशानात एरवी भयाण वाटतं म्हणे, एकटीच चिता जळत असते बाकी अंधार.आता आपल्या माणसाचं चितेत जळण्यासाठी कधी नंबर येईल या विवेचंनेत थांबलेली माणसं, स्मशानभूमीत काम करणाऱ्या माणसांची यंत्रासारखी लगबग, सतत येणाऱ्या अँब्युलन्स, समोर धडाडणाऱ्या चिता आणि त्यांचा सगळीकडे पसरलेला प्रकाश फक्त भेसूर वाटतो.अर्धा किलोमीटर अंतरावरून कळतं पुढे स्मशानभूमी आहे इतका त्या अग्नीचा प्रकाश पसरलेला असतो. भीती फक्त माणसाच्या हतबलतेची वाटते.बाकी कोणतं वर्ष पनवती नसतं, काळ पनवती नसतो, आपण माणसंच पनवती असतो.(टीप : बीबीसी मराठीच्या सदस्याने आपला अनुभव या ब्लॉगमध्ये मांडला आहे. त्यांच्या इच्छेखातर नाव देत नाही आहोत न्यूज मराठीचे सर्व अपडेट्स मिळवण्यासाठी आम्हाला YouTube, Facebook, Instagram आणि Twitter वर नक्की फॉलो करा.

महाराष्ट्रातल्या कोणत्याही शहराची, खरंतर परिस्थिती पाहाता देशातल्या कोणत्याही शहराची सद्यस्थिती आहे. तुम्ही अहमदनगरचा तो व्हीडिओ पाहिला असेल जिथे एकाच चितेवर सहा जणांना अग्नी दिला. किंवा देशाच्या कोणत्यातरी नदीच्या किनारी जमिनीवरच मृतदेह ठेवून त्याभोवती लाकडं रचून पेटवलेलंही पाहिलं असेल, अगदी परवा समोर आलेला लखनऊच्या स्मशानातला अनेक मृतदेह जळतानाचा व्हीडिओही नजरेसमोरून गेला असेल. तसाच माझा एक अनुभव. By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब कोव्हिडने मरणाऱ्या लोकांचे आकडे रोज समोर येतात, थोडं हळहळून, चुकचुकून सोडून देतो आपण, कामाला लागतो. दुसऱ्या दिवशी परत आकडे येतात. तेच घडतं, तोपर्यंत जोपर्यंत ही काळाची चाहूल तुमच्या घरात लागत नाही. अचानक आकडे फक्त आकडे न राहाता आपल्या जगण्याची धावपळ बनते. काहीतरी शाप असावा माणसाला की आपला माणूस मरत नाही तोवर काही सिरीयसली घ्यावंसच वाटत नाही. तशीच गर्दी बाहेर वाढत असते. आभाळच फाटलं त्याला कुठे कुठे ठिगळं लावणार असं माझी आजी म्हणायची. कोरोनाने मरणारा माणूस कसा मरतो माहितेय? श्वास कोंडून, की शेवटी त्याला जगण्यासाठी एक श्वास घेणं मुश्कील व्हावं. जो/ज...