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हाल के समय में कोविड महामारी के कारण जनसाधारण को इतनी कठिनाईयां सहनी पड़ी हैं कि आगामी केन्द्रीय बजट में उन्हें बड़ी राहत मिलनी ही चाहिए. By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब इस संदर्भ में हाल ही में 25 जनवरी को जारी की गई आक्सफैम इंडिया विषमता रिपोर्ट में न्यायसंगत राजस्व व जरूरी खर्चों के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य व सुझाव दिए गए हैं.इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कोविड-19 के हमले से पहले ही भारत का सकल घरेलू उत्पाद कठिन दौर में था. वर्ष 2017-18 में संवृद्धि दर 7 प्रतिशत थी. वर्ष 2018-19 में यह 6.1 प्रतिशत पर सिमट गई और वर्ष 2019-20 में और भी कम होकर 4.2 प्रतिशत पर. यह मुख्य रूप से विमुद्रीकरण व जीएसटी के क्रियान्वयन के कारण हुआ, जिससे नकदी पर चलने वाला अनौपचारिक क्षेत्र व छोटे उद्यम बुरी तरह प्रभावित हुए.कोविड-19 से यह स्थिति और बिगड़ गई, सकल घरेलू उत्पादन (जीएसटी) की संवृद्धि दर और कम हो गई तथा इसका देश की राजस्व प्राप्ति पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है. यह अनुमानित है कि नौमीनल जीएसटी वर्ष 2020-21 में वर्ष 2019-20 जितना ही रहेगा.महामारी के कारण जो वित्तीय आवश्यकताएं उत्पन्न हुई हैं उनकी पूर्ति पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा. देश के कुल रेवेन्यु का 73 प्रतिशत हिस्सा करों के रूप में प्राप्त होता है. अप्रत्यक्ष करों (कस्टम ड्यूटी व जीएसटी) का हिस्सा वर्ष 2014-15 (वास्तविक) में 44 प्रतिशत था जबकि वर्ष 2018-19 (बजट अनुमान) में यह बढ़कर 47 प्रतिशत हो गया. वर्ष 2019-20 (बजट अनुमान) में यह 46 प्रतिशत है. इससे पता चलता है कि इस समय भी कस्टम ड्यूटी व जीएसटी पर भारी निर्भरता बनी हुई है.इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020-21 वित्तीय वर्ष के लिए कुल कर रेवेन्यू प्राप्ति का लक्ष्य 16.35 लाख करोड़ रुपए था. अभी तक अपेक्षाकृत कम भाग ही प्राप्त हुआ है. सितंबर 2020 तक बजट-अनुमान का 50 प्रतिशत खर्च हो चुका था जबकि कुल प्राप्ति का एक तिहाई ही प्राप्त हुआ था. यदि कर - जीडीपी का अनुपात बढ़ाने के लिए जीएसटी पर निर्भरता बढ़ाई जाती है तो देश में असमानता और बढ़ेगी क्योंकि जीएसटी एक अप्रत्यक्ष कर है व यह गरीब व अमीर पर एक ही दर से लगता है. इस कमी को दूर करने के लिए जीएसटी की पैसे वालों व गरीबों के लिए अलग दर हो सकती है, या आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी पूरी तरह हटाया जा सकता है. इसके साथ प्रत्यक्ष करों की दरें बढ़ाने पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए. आय कर व कारपोरेट कर प्रत्यक्ष कर हैं जिनके माध्यम से अधिक धनी करदाताओं से अधिक कर प्राप्त किए जा सकता है.अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिकदिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैंहम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.क्या कहता है फोर्सभारतीय रेवेन्यू सर्विस (राजस्व सेवा) की एसोसिएशन ने एक नीति पत्र तैयार किया था जिसका शीर्षक है, 'कोविड-19 का रिस्पांस व राजस्व विकल्प'. संक्षेप में इसे 'फोर्स' दस्तावेज कहा गया है. इसमें सलाह दी गई है कि जिनकी आय एक वर्ष में एक करोड़ रुपए से अधिक है, उन पर आय कर की दर 40 प्रतिशत तक बढ़ा देनी चाहिए. इसमें कहा गया है कि संपत्ति कर की वापसी करनी चाहिए. इसके अतिरिक्त 10 लाख रुपए से अधिक की कर देय आय पर केवल एक बार 4 प्रतिशत का विशेष कोविड-19 उपकर (सेस) लगाना चाहिए.इस नीति-पत्र के अनुसार इन उपायों को अपनाकर लाकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाया जा सकता था, उसे गति दी जा सकती थी. यदि इस तरह कर-राजस्व को बढ़ाया जाए तो जनसाधारण के उपयोग की वस्तुओं पर जीएसटी लगाने से बचा जा सकेगा व निर्धन वर्ग पर अधिक बोझ डालने से बचा जा सकेगा.सबसे धनी 954 परिवारों पर 4 प्रतिशत करएक अनुमान के अनुसार यदि देश के सबसे धनी 954 परिवारों पर 4 प्रतिशत कर लगा दिया जाए तो सकल घरेलू उत्पाद के 1 प्रतिशत के बराबर धनराशि प्राप्त की जा सकती है . भारतीय सरकार ने कोविड-19 के संकट से उभरने का जो आत्म-निर्भरता पैकेज घोषित किया, उसका प्रत्यक्ष बजट असर लगभग 2 लाख करोड़ रुपए के आसपास ही है, जो सकल घरेलू उत्पाद का 1 प्रतिशत ही है. यह महामारी के बहुत व्यापक व अधिक प्रतिकूल असर को दूर करने के लिए अपर्याप्त है. साथ में स्पष्ट है कि महामारी से प्रतिकूल प्रभावित मध्यम वर्ग से कर प्राप्त बढ़ाने के स्थान पर सरकार को सबसे धनी करदाताओं पर कोविड-19 सरचार्ज लगाना चाहिए था और इसका उपयोग जन-कल्याण पैकेज के लिए करना चाहिए था.रिपोर्ट के अंत में बजट को आम लोगों के पक्ष में बनाने के लिए कुछ संस्तुतियां भी की गई हैं. कहा गया है कि कोविड-19 के आगे के दौर में सबसे अधिक धनी व्यक्तियों व निगमों पर टैक्स बढ़ाने के संदर्भ में बदलाव करना चाहिए.50 लाख रुपए प्रति वर्ष से अधिक आय के कर दाताओं की आय पर दो प्रतिशत का अतिरिक्त सरचार्ज लगाना चाहिए.महामारी के दौरान अप्रत्याशित/अत्यधिक मुनाफा कमाने वाली कंपनियों पर एक अल्प-कालीन टैक्स लगाना चाहिए.निर्धन वर्ग पर बोझ कम करने के लिए आवश्यक वस्तुओं व सेवाओं पर जीएसटी हटा देना चाहिए या कम कर देना चाहिए.उम्मीद है कि इस तरह के उपायों से निर्धन वर्ग को राहत दी जा सकेगी व इसके लिए जरूरी संसाधन भी जुटाए जा सकेंगे.इस वर्ष बजट में वित्त मंत्री के सामने बहुत बड़ी चुनौतियां हैं. जीडीपी और रेवेन्यू प्राप्ति के गिरावट के बीच कई तरह के खर्च को बढ़ाना जरूरी हो गया है. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि सबसे कमजोर वर्गों की जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया जाए. नरेगा के आवंटन में बड़ी वृद्धि के साथ ग्रामीण रोजगार गारंटी की तर्ज पर शहरी रोजगार गारंटी की योजना आरंभ करने की भी चर्चा रही है. मूल बात ये है कि बढ़ती आर्थिक व आजिविका की कठिनाइयों के बीच शहरों और गावों के सबसे कमजोर परिवारों की सहायता व राहत बहुत जरूरी है.In recent times, due to the Kovid epidemic, the public has had to face so many difficulties that they should get big relief in the upcoming Union Budget. By social worker Vanita Kasani Punjab, in this context, some important facts and suggestions about equitable revenue and necessary expenses have been given in the recent Oxfam India Inequality Report released on 25 January. It has been reported in this report that India's GDP was in a difficult phase even before the Kovid-19 attack. In the year 2017-18, the growth rate was 7 percent. It was reduced to 6.1 percent in the year 2018-19 and further reduced to 4.2 percent in the year 2019-20. This was mainly due to demonetisation and the implementation of GST, which severely affected the cash-driven informal sector and small enterprises. This situation worsened with Kovid-19, the growth rate of gross domestic product (GST) further reduced. Has gone and it is also adversely affecting the revenue receipt of the country. It is estimated that in the year 2020-21, the nine-year GST will remain the same as the year 2019-20. The financial requirements that have arisen due to the epidemic will have an adverse effect on its fulfillment. 73 percent of the country's total revenue is received as taxes. The share of indirect taxes (custom duty and GST) was 44 percent in the year 2014-15 (actual) while it increased to 47 percent in the year 2018-19 (budget estimate). This is 46 percent in the year 2019-20 (budget estimate). This shows that even at this time there is a heavy dependence on custom duty and GST. According to this report, the total tax revenue target for the year 2020-21 was Rs 16.35 lakh crore. So far only a relatively small portion has been received. By September 2020, 50 percent of the budget estimate had been spent, while only one third of the total was received. If the dependence on GST is increased to increase the tax-GDP ratio, inequality will increase in the country because GST is an indirect tax and it is levied on the poor and rich at the same rate. To overcome this deficiency, GST may be different for the poor and the poor, or GST can be completely removed on essential commodities. Along with this, more emphasis should be given on raising the rates of direct taxes. Income tax and corporate tax are direct taxes through which higher taxes can be obtained from more wealthy taxpayers. Good journalism matters, even more in a crisis Deprint brings to you stories that you should read, even from where they are happening We can continue this only if you cooperate with us for our reporting, writing and photographs. What does the force say The Association of Indian Revenue Service (Revenue Service) had prepared a policy paper titled, 'Response and Revenue Options of Kovid-19'. In short, it has been called a 'force' document. It has been suggested that the income tax rate should be increased by 40 percent for those whose income is more than one crore rupees in a year. It states that property tax should be refunded. Apart from this, special Kovid-19 Cess (Cess) of 4 percent should be imposed only once on taxable income of more than Rs 10 lakh. According to this policy letter, after adopting these measures, after the lockdown, the economy could be elevated, it could be given momentum. If tax-revenue is increased in this way, it will be avoided to impose GST on the items of public use and avoid putting more burden on the poor. 4 percent tax on wealthiest 954 families According to an estimate, if 4 percent tax is imposed on the wealthiest 954 families of the country, then an amount equal to 1 percent of GDP can be obtained. The self-reliance package announced by the Indian government to emerge from the crisis of Kovid-19, has a direct budget impact of around 2 lakh crore rupees, which is only 1 percent of GDP. This is insufficient to overcome the much wider and more adverse effects of the epidemic. It is also clear that instead of increasing the tax received from the epidemic-affected middle class, the government should have levied Kovid-19 surcharge on the wealthiest taxpayers and used it for public welfare package. At the end of the report, some recommendations have also been made to make the budget in favor of common people. It has been said that in the next phase of Kovid-19, changes should be made in the context of increasing the tax on the wealthiest individuals and corporations. A surcharge of two percent should be levied on the income of tax payers of income above Rs 50 lakh per year. A short-term tax should be levied on companies making unexpected / excessive profits during an epidemic. To reduce the burden on the poor, GST should be removed or reduced on essential goods and services. It is expected that such measures will provide relief to the poor and it will also be able to mobilize necessary resources. This year, there are huge challenges before the Finance Minister in the budget. In the midst of declining GDP and revenue realization, it has become necessary to increase many types of spending. Therefore it is very important that special attention be paid to the needs of the most vulnerable sections. With the major increase in the allocation of NREGA, there has also been talk of starting an urban employment guarantee scheme on the lines of rural employment guarantee. The basic thing is that amidst increasing economic and livelihood difficulties, the help and relief of the most vulnerable families in cities and villages is very important.

In recent times, due to the Kovid epidemic, the public has had to face so many difficulties that they should get big relief in the upcoming Union Budget. By social worker Vanita Kasani Punjab, in this context, some important facts and suggestions about equitable revenue and necessary expenses have been given in the recent Oxfam India Inequality Report released on 25 January.

 It has been reported in this report that India's GDP was in a difficult phase even before the Kovid-19 attack. In the year 2017-18, the growth rate was 7 percent. It was reduced to 6.1 percent in the year 2018-19 and further reduced to 4.2 percent in the year 2019-20. This was mainly due to demonetisation and the implementation of GST, which severely affected the cash-driven informal sector and small enterprises. This situation worsened with Kovid-19, the growth rate of gross domestic product (GST) further reduced. Has gone and it is also adversely affecting the revenue receipt of the country. It is estimated that in the year 2020-21, the nine-year GST will remain the same as the year 2019-20.

 The financial requirements that have arisen due to the epidemic will have an adverse effect on its fulfillment. 73 percent of the country's total revenue is received as taxes. The share of indirect taxes (custom duty and GST) was 44 percent in the year 2014-15 (actual) while it increased to 47 percent in the year 2018-19 (budget estimate). This is 46 percent in the year 2019-20 (budget estimate). This shows that even at this time there is a heavy dependence on custom duty and GST.

 According to this report, the total tax revenue target for the year 2020-21 was Rs 16.35 lakh crore. So far only a relatively small portion has been received. By September 2020, 50 percent of the budget estimate had been spent, while only one third of the total was received. If the dependence on GST is increased to increase the tax-GDP ratio, inequality will increase in the country because GST is an indirect tax and it is levied on the poor and rich at the same rate. To overcome this deficiency, GST may be different for the poor and the poor, or GST can be completely removed on essential commodities. Along with this, more emphasis should be given on raising the rates of direct taxes. Income tax and corporate tax are direct taxes through which higher taxes can be obtained from more wealthy taxpayers.

 Good journalism matters, even more in a crisis

 Deprint brings to you stories that you should read, even from where they are happening

 We can continue this only if you cooperate with us for our reporting, writing and photographs.

 What does the force say

 The Association of Indian Revenue Service (Revenue Service) had prepared a policy paper titled, 'Response and Revenue Options of Kovid-19'. In short, it has been called a 'force' document. It has been suggested that the income tax rate should be increased by 40 percent for those whose income is more than one crore rupees in a year. It states that property tax should be refunded. Apart from this, special Kovid-19 Cess (Cess) of 4 percent should be imposed only once on taxable income of more than Rs 10 lakh.

 According to this policy letter, after adopting these measures, after the lockdown, the economy could be elevated, it could be given momentum. If tax-revenue is increased in this way, it will be avoided to impose GST on the items of public use and avoid putting more burden on the poor.

 4 percent tax on wealthiest 954 families

 According to an estimate, if 4 percent tax is imposed on the wealthiest 954 families of the country, then an amount equal to 1 percent of GDP can be obtained. The self-reliance package announced by the Indian government to emerge from the crisis of Kovid-19, has a direct budget impact of around 2 lakh crore rupees, which is only 1 percent of GDP. This is insufficient to overcome the much wider and more adverse effects of the epidemic. It is also clear that instead of increasing the tax received from the epidemic-affected middle class, the government should have levied Kovid-19 surcharge on the wealthiest taxpayers and used it for public welfare package.

 At the end of the report, some recommendations have also been made to make the budget in favor of common people. It has been said that in the next phase of Kovid-19, changes should be made in the context of increasing the tax on the wealthiest individuals and corporations.

 A surcharge of two percent should be levied on the income of tax payers of income above Rs 50 lakh per year.

 A short-term tax should be levied on companies making unexpected / excessive profits during an epidemic.

 To reduce the burden on the poor, GST should be removed or reduced on essential goods and services.

 It is expected that such measures will provide relief to the poor and it will also be able to mobilize necessary resources.

 This year, there are huge challenges before the Finance Minister in the budget. In the midst of declining GDP and revenue realization, it has become necessary to increase many types of spending. Therefore it is very important that special attention be paid to the needs of the most vulnerable sections. With the major increase in the allocation of NREGA, there has also been talk of starting an urban employment guarantee scheme on the lines of rural employment guarantee. The basic thing is that amidst increasing economic and livelihood difficulties, the help and relief of the most vulnerable families in cities and villages is very important.हाल के समय में कोविड महामारी के कारण जनसाधारण को इतनी कठिनाईयां सहनी पड़ी हैं कि आगामी केन्द्रीय बजट में उन्हें बड़ी राहत मिलनी ही चाहिए. By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब इस संदर्भ में हाल ही में 25 जनवरी को जारी की गई आक्सफैम इंडिया विषमता रिपोर्ट में न्यायसंगत राजस्व व जरूरी खर्चों के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य व सुझाव दिए गए हैं.

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कोविड-19 के हमले से पहले ही भारत का सकल घरेलू उत्पाद कठिन दौर में था. वर्ष 2017-18 में संवृद्धि दर 7 प्रतिशत थी. वर्ष 2018-19 में यह 6.1 प्रतिशत पर सिमट गई और वर्ष 2019-20 में और भी कम होकर 4.2 प्रतिशत पर. यह मुख्य रूप से विमुद्रीकरण व जीएसटी के क्रियान्वयन के कारण हुआ, जिससे नकदी पर चलने वाला अनौपचारिक क्षेत्र व छोटे उद्यम बुरी तरह प्रभावित हुए.कोविड-19 से यह स्थिति और बिगड़ गई, सकल घरेलू उत्पादन (जीएसटी) की संवृद्धि दर और कम हो गई तथा इसका देश की राजस्व प्राप्ति पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है. यह अनुमानित है कि नौमीनल जीएसटी वर्ष 2020-21 में वर्ष 2019-20 जितना ही रहेगा.

महामारी के कारण जो वित्तीय आवश्यकताएं उत्पन्न हुई हैं उनकी पूर्ति पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा. देश के कुल रेवेन्यु का 73 प्रतिशत हिस्सा करों के रूप में प्राप्त होता है. अप्रत्यक्ष करों (कस्टम ड्यूटी व जीएसटी) का हिस्सा वर्ष 2014-15 (वास्तविक) में 44 प्रतिशत था जबकि वर्ष 2018-19 (बजट अनुमान) में यह बढ़कर 47 प्रतिशत हो गया. वर्ष 2019-20 (बजट अनुमान) में यह 46 प्रतिशत है. इससे पता चलता है कि इस समय भी कस्टम ड्यूटी व जीएसटी पर भारी निर्भरता बनी हुई है.

इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020-21 वित्तीय वर्ष के लिए कुल कर रेवेन्यू प्राप्ति का लक्ष्य 16.35 लाख करोड़ रुपए था. अभी तक अपेक्षाकृत कम भाग ही प्राप्त हुआ है. सितंबर 2020 तक बजट-अनुमान का 50 प्रतिशत खर्च हो चुका था जबकि कुल प्राप्ति का एक तिहाई ही प्राप्त हुआ था. यदि कर - जीडीपी का अनुपात बढ़ाने के लिए जीएसटी पर निर्भरता बढ़ाई जाती है तो देश में असमानता और बढ़ेगी क्योंकि जीएसटी एक अप्रत्यक्ष कर है व यह गरीब व अमीर पर एक ही दर से लगता है. इस कमी को दूर करने के लिए जीएसटी की पैसे वालों व गरीबों के लिए अलग दर हो सकती है, या आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी पूरी तरह हटाया जा सकता है. इसके साथ प्रत्यक्ष करों की दरें बढ़ाने पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए. आय कर व कारपोरेट कर प्रत्यक्ष कर हैं जिनके माध्यम से अधिक धनी करदाताओं से अधिक कर प्राप्त किए जा सकता है.

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क्या कहता है फोर्स

भारतीय रेवेन्यू सर्विस (राजस्व सेवा) की एसोसिएशन ने एक नीति पत्र तैयार किया था जिसका शीर्षक है, 'कोविड-19 का रिस्पांस व राजस्व विकल्प'. संक्षेप में इसे 'फोर्स' दस्तावेज कहा गया है. इसमें सलाह दी गई है कि जिनकी आय एक वर्ष में एक करोड़ रुपए से अधिक है, उन पर आय कर की दर 40 प्रतिशत तक बढ़ा देनी चाहिए. इसमें कहा गया है कि संपत्ति कर की वापसी करनी चाहिए. इसके अतिरिक्त 10 लाख रुपए से अधिक की कर देय आय पर केवल एक बार 4 प्रतिशत का विशेष कोविड-19 उपकर (सेस) लगाना चाहिए.

इस नीति-पत्र के अनुसार इन उपायों को अपनाकर लाकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाया जा सकता था, उसे गति दी जा सकती थी. यदि इस तरह कर-राजस्व को बढ़ाया जाए तो जनसाधारण के उपयोग की वस्तुओं पर जीएसटी लगाने से बचा जा सकेगा व निर्धन वर्ग पर अधिक बोझ डालने से बचा जा सकेगा.

सबसे धनी 954 परिवारों पर 4 प्रतिशत कर

एक अनुमान के अनुसार यदि देश के सबसे धनी 954 परिवारों पर 4 प्रतिशत कर लगा दिया जाए तो सकल घरेलू उत्पाद के 1 प्रतिशत के बराबर धनराशि प्राप्त की जा सकती है . भारतीय सरकार ने कोविड-19 के संकट से उभरने का जो आत्म-निर्भरता पैकेज घोषित किया, उसका प्रत्यक्ष बजट असर लगभग 2 लाख करोड़ रुपए के आसपास ही है, जो सकल घरेलू उत्पाद का 1 प्रतिशत ही है. यह महामारी के बहुत व्यापक व अधिक प्रतिकूल असर को दूर करने के लिए अपर्याप्त है. साथ में स्पष्ट है कि महामारी से प्रतिकूल प्रभावित मध्यम वर्ग से कर प्राप्त बढ़ाने के स्थान पर सरकार को सबसे धनी करदाताओं पर कोविड-19 सरचार्ज लगाना चाहिए था और इसका उपयोग जन-कल्याण पैकेज के लिए करना चाहिए था.

रिपोर्ट के अंत में बजट को आम लोगों के पक्ष में बनाने के लिए कुछ संस्तुतियां भी की गई हैं. कहा गया है कि कोविड-19 के आगे के दौर में सबसे अधिक धनी व्यक्तियों व निगमों पर टैक्स बढ़ाने के संदर्भ में बदलाव करना चाहिए.

50 लाख रुपए प्रति वर्ष से अधिक आय के कर दाताओं की आय पर दो प्रतिशत का अतिरिक्त सरचार्ज लगाना चाहिए.

महामारी के दौरान अप्रत्याशित/अत्यधिक मुनाफा कमाने वाली कंपनियों पर एक अल्प-कालीन टैक्स लगाना चाहिए.

निर्धन वर्ग पर बोझ कम करने के लिए आवश्यक वस्तुओं व सेवाओं पर जीएसटी हटा देना चाहिए या कम कर देना चाहिए.

उम्मीद है कि इस तरह के उपायों से निर्धन वर्ग को राहत दी जा सकेगी व इसके लिए जरूरी संसाधन भी जुटाए जा सकेंगे.

इस वर्ष बजट में वित्त मंत्री के सामने बहुत बड़ी चुनौतियां हैं. जीडीपी और रेवेन्यू प्राप्ति के गिरावट के बीच कई तरह के खर्च को बढ़ाना जरूरी हो गया है. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि सबसे कमजोर वर्गों की जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया जाए. नरेगा के आवंटन में बड़ी वृद्धि के साथ ग्रामीण रोजगार गारंटी की तर्ज पर शहरी रोजगार गारंटी की योजना आरंभ करने की भी चर्चा रही है. मूल बात ये है कि बढ़ती आर्थिक व आजिविका की कठिनाइयों के बीच शहरों और गावों के सबसे कमजोर परिवारों की सहायता व राहत बहुत जरूरी है.

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, पंजाब में कोरोना से 11 की मौत, 595 पॉजिटिव मिले, मोहाली समेत नौ जिलों में हालत चिंताजनक By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबसारएक हफ्ते में संक्रमितों की संख्या में 50 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी जालंधर के बीएसएफ कैंपस में बनाया गया माइक्रो कंटेनमेंट जोनस्वास्थ्य विभाग रोज ले रहा 27 हजार नमूने, 2.5% हुई कोरोना दर17 फरवरी के बाद से पंजाब में तेजी से संक्रमण फैलने लगा है। नौ जिलों में संक्रमण अन्य जिलों की अपेक्षा ज्यादा तेजी से बढ़ा है। इनमें लुधियाना, जालंधर, पटियाला, मोहाली, अमृतसर, होशियारपुर, कपूरथला, गुरदासपुर और नवांशहर शामिल हैं। यहां रोज 50 से ज्यादा संक्रमित सामने आ रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग भी बढ़ते संक्रमण को लेकर चिंतित है। यह देखते हुए एहतियातन माइक्रो कंटेनमेंट जोन बनाए जा रहे हैं। जालंधर के बीएसएफ कैंपस में भी एक माइक्रो कंटेनमेंट जोन बनाया गया है। इसके साथ ही स्वास्थ्य विभाग ने जांच 20 हजार से बढ़ाकर 27 हजार कर दी है। इसके अलावा संक्रमण से सबसे प्रभावित जिलों के डीसी को कोरोना संबंधी दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन कराने का निर्देश दिया गया है। 11 की मौत, 595 नए मामले मिलेपंजाब में शनिवार को 595 संक्रमण के नए मामले सामने आए हैं। जालंधर में सबसे अधिक 70 संक्रमण के मामले आए। वहीं, राज्य में 11 लोगों की मौत भी हुई है। इनमें होशियारपुर में चार, लुधियाना में तीन, पटियाला में दो, मानसा में एक, तरनतारन में एक शामिल है। अब तक पंजाब में 5825 लोगों की संक्रमण से मौत हो चुकी है, जबकि इस समय सक्रिय मामलों का आंकड़ा 4436 है।

11 deaths due to corona in Punjab, 595 positives found, condition worsening in nine districts including Mohali. By social worker Vanita Kasani Punjab  abstract  Number of infected increased by more than 50% in a week  Micro Containment Zone created in Jalandhar's BSF Campus  Health department is taking 27 thousand samples daily, 2.5% corona rate  Since 17 February, infection has started spreading rapidly in Punjab. In nine districts, the infection has increased faster than other districts. These include Ludhiana, Jalandhar, Patiala, Mohali, Amritsar, Hoshiarpur, Kapurthala, Gurdaspur and Nawanshahar. More than 50 infected people are coming here every day.  The health department is also concerned about the increasing infection. In view of this, precautionary micro containment zones are being created. A micro containment zone has also been set up at BSF Campus in Jalandhar. With this, the Health Department has increased the investigation from 20 thousan...

नई दिल्ली: कोविद -19 संक्रमण के साथ हर गुजरते दिन के साथ, केंद्र सरकार ने कोरोना-प्रेरित लॉकडाउन में और ढील देने की घोषणा की है जो पिछले साल 22 मार्च को देश में शुरू में लगाया गया था। नए दिशा-निर्देश आज के बाद से नियंत्रण क्षेत्रों के बाहर लागू होंगे। विनीता कासनी पंजाब द्वारा, प्रमुख निर्णयों में, सरकार ने सिनेमा हॉलों को 100 प्रतिशत बैठने की क्षमता के साथ संचालित करने की अनुमति दी है, जबकि कई राज्य सरकारों ने कक्षा 10, 12 के छात्रों के लिए स्कूलों को फिर से खोलने की अनुमति दी है। सिनेमा हॉलों में पूरी व्यस्तता सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स में पूर्ण कब्जे की अनुमति 1 फरवरी से दी गई है। सिनेमा हॉल और सिनेमाघरों के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) का एक सेट जारी किया गया है। एसओपी यह भी कहते हैं कि कोई भी फिल्में कंस्ट्रक्शन जोन में प्रदर्शित नहीं की जाएंगी। अब COVID -19 के खिलाफ सामाजिक गड़बड़ी, फेस कवर, आरोग्य सेतु ऐप, थर्मल स्क्रीनिंग और अन्य सुरक्षा उपायों के साथ प्रदर्शनियों की अनुमति दी जाएगी। स्विमिंग पूल खोलना सरकार ने पूल के अंदर सामाजिक दूरी बनाए रखने के साथ स्विमिंग पूल खोलने की अनुमति दी है। 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, 65 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओं को स्विमिंग पूल का उपयोग नहीं करने की सलाह दी गई है। फिर से शुरू करने के लिए ट्रेनों में ई-कैटरिंग सेवाएं भारतीय रेलवे खानपान और पर्यटन निगम (IRCTC) 1 फरवरी से 62 स्टेशनों पर अपनी ई-कैटरिंग सेवाओं को फिर से शुरू करेगा। आईआरसीटीसी ने एक बयान में घोषणा की थी, "कंपनी 1 फरवरी, 2021 से पहले चरण में ई-कैटरिंग सेवाओं को पहले चरण में (62 स्टेशन) फिर से शुरू करेगी।" मुंबई स्थानीय सभी के लिए खोलने के लिए मुंबई में उपनगरीय ट्रेन सेवाएं आज से आम जनता के लिए खुलेंगी। स्थानीय ट्रेन सेवाओं, जो शहर की जीवन रेखा के रूप में मानी जाती हैं, को कोरोनोवायरस महामारी और लॉकडाउन के कारण पिछले साल मार्च में निलंबित कर दिया गया था। वे पहली सेवा से सुबह 7 बजे तक, दोपहर के 4 बजे और 9 बजे से अंतिम सेवा तक के कार्यों को फिर से शुरू करेंगे। दिल्ली विश्वविद्यालय का फिर से उद्घाटन दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने सभी शिक्षण संकाय को 1 फरवरी से शारीरिक रूप से उपस्थित होने के लिए कहा है। हालांकि, अधिकारियों ने केवल अंतिम वर्ष के छात्रों को छोटे बैचों में कॉलेज में शारीरिक रूप से उपस्थित होने की अनुमति दी है।New Delhi: With Covid-19 infections waning with each passing day, the Central government has announced further relaxations in the corona-induced lockdown which was initially imposed in the country on March 22 last year. The new guidelines will come into effect outside containment zones from today onwards.By Vnita kasnia Punjab,Among the major decisions, the government has permitted cinema halls to operate with 100 per cent seating capacity while many state governments have already allowed reopening of schools for Class 10, 12 students.Full occupancy in cinema hallsFull occupancy in cinema halls and multiplexes have been permitted from February 1. A set of standard operating procedures (SOPs) for cinema halls and theatres has been issued.The SOPs also state that no films shall be screened in containment zones.Exhibitions will now also be allowed with social distancing, face covers, Arogya Setu app, thermal screening and other safety measures against COVID-19.Opening of swimming poolsThe govt has allowed the opening of swimming pools with maintaining social distancing inside the pools.Children below 10 years, elderly above 65 years of age and pregnant women have been recommended to not use the swimming pools.E-catering services in trains to resumeThe Indian Railway Catering and Tourism Corporation (IRCTC) will resume its e-catering services at 62 stations from February 1."The company will resume E-catering services at a selected number of stations (62 stations) in the first phase with effect from February 1, 2021 onwards," the IRCTC had announced in a statement.Mumbai local to open for allThe suburban train services in Mumbai will open for the general public from today. The local train services, which is regarded as the lifeline of the city, were suspended in March last year due to the coronavirus pandemic and lockdown.They will resume functions from the first service till 7 AM, noon to 4 PM and 9 PM to the last service.Delhi University re-openingDelhi University has asked all its teaching faculty to be physically present from February 1. However, the authorities have only allowed the students of final year to attend the college physically in small batches.,

नई दिल्ली: कोविद -19 संक्रमण के साथ हर गुजरते दिन के साथ, केंद्र सरकार ने कोरोना-प्रेरित लॉकडाउन में और ढील देने की घोषणा की है जो पिछले साल 22 मार्च को देश में शुरू में लगाया गया था। नए दिशा-निर्देश आज के बाद से नियंत्रण क्षेत्रों के बाहर लागू होंगे।  विनीता कासनी पंजाब द्वारा,  प्रमुख निर्णयों में, सरकार ने सिनेमा हॉलों को 100 प्रतिशत बैठने की क्षमता के साथ संचालित करने की अनुमति दी है, जबकि कई राज्य सरकारों ने कक्षा 10, 12 के छात्रों के लिए स्कूलों को फिर से खोलने की अनुमति दी है।  सिनेमा हॉलों में पूरी व्यस्तता  सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स में पूर्ण कब्जे की अनुमति 1 फरवरी से दी गई है। सिनेमा हॉल और सिनेमाघरों के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) का एक सेट जारी किया गया है। एसओपी यह भी कहते हैं कि कोई भी फिल्में कंस्ट्रक्शन जोन में प्रदर्शित नहीं की जाएंगी।  अब COVID -19 के खिलाफ सामाजिक गड़बड़ी, फेस कवर, आरोग्य सेतु ऐप, थर्मल स्क्रीनिंग और अन्य सुरक्षा उपायों के साथ प्रदर्शनियों की अनुमति दी जाएगी।  स्विमिंग पूल खोलना  सरकार ने पूल के अंदर सामाज...