ਜਦੋਂ ਤੋਂ ਕੋਰੋਨਾ ਵਾਇਰਸ ਦੁਨੀਆ ਵਿੱਚ ਆਇਆ ਹੈ, ਐਂਟੀਬਾਡੀਜ਼ ਬਾਰੇ ਵਿਚਾਰ-ਵਟਾਂਦਰੇ ਬਹੁਤ ਚਲਦੇ ਆ ਰਹੇ ਹਨ, ਪਰ ਕੀ ਤੁਸੀਂ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ਕਿ ਐਂਟੀਬਾਡੀਜ਼ ਕੀ ਹਨ?ਸਮਾਜ ਸੇਵਕ ਵਨੀਤਾ ਕਸਾਨੀ ਪੰਜਾਬ ਵੱਲੋਂਅਸਲ ਵਿੱਚ,
जब से कोरोना वायरस दुनिया में आया है, तब से लेकर एंटीबॉडी को लेकर चर्चाएं कुछ ज्यादा ही चल रही हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर एंटीबॉडी क्या होती है?
दरअसल, किसी वायरस या बीमारी से जब शरीर संक्रमित होता है तो शरीर एक सुरक्षात्मक प्रोटीन का उत्पादन करता है, जिसे एंटीबॉडी कहा जाता है। कोरोना होने के बाद भी शरीर में एंटीबॉडी बनती हैं, लेकिन ये एंटीबॉडी आखिर कब तक वायरस से बचाव कर सकती हैं, इसको लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। हालांकि ज्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि ये एंटीबॉडी चार से छह महीने तक शरीर में रहती हैं। अब इसी को लेकर एक नए शोध में यह दावा किया गया है कि कोरोना से संक्रमित होने के आठ महीने बाद तक इंसान के शरीर में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडीज रहती हैं।
यह अध्ययन इटली के आईएसएस नेशनल हेल्थ इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। अध्ययन में 162 कोरोना मरीजों को शामिल किया गया था, जो सिम्प्टोमैटिक यानी लक्षण वाले थे। ये मरीज पिछले साल कोरोना की वजह से गंभीर रूप से बीमारी पड़े थे और उन्हें इमरजेंसी रूम में रखा गया था। मार्च और अप्रैल 2020 में इनके ब्लड सैंपल लिए गए थे और फिर बाद में नवंबर में दोबारा उनका ब्लड सैंपल लिया गया, ताकि एंटीबॉडी की जांच की जा सके। हालांकि इनमें से करीब 29 मरीजों की मौत हो गई थी।
अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि कोरोना संक्रमित होने के बाद अगले आठ महीनों तक अधिकतर मरीजों में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडीज मौजूद थे। उनमें से सिर्फ तीन मरीज ही ऐसे थे, जिनके शरीर में बीमारी से लड़ने वाले एंटीबॉडीज नहीं पाए गए।
इस अध्ययन में दो तिहाई पुरुष शामिल थे और उनकी औसत उम्र 63 साल थी। इनमें से करीब 57 फीसदी मरीज ऐसे थे, जो पहले से ही किसी न किसी बीमारी से पीड़ित थे। इनमें ज्यादातर मरीज उच्च रक्तचाप और डायबिटीज के मरीज थे।
इस अध्ययन को 'नेचर कम्यूनिकेशन्स साइंटिफिक जर्नल' में हाल ही में प्रकाशित किया गया है। इसमें शोधकर्ताओं ने एक और खास जानकारी दी है कि जिन मरीजों में संक्रमण के 15 दिन में एंटीबॉडीज नहीं बनीं, उनके गंभीर रूप से बीमार पड़ने का जोखिम ज्यादा था।
स्रोत और संदर्भ:
Neutralizing antibody responses to SARS-CoV-2 in symptomatic COVID-19 is persistent and critical for survival
https://www.nature.com/articles/s41467-021-22958-8
अस्वीकरण नोट: यह लेख 'नेचर कम्यूनिकेशन्स साइंटिफिक जर्नल' में प्रकाशित अध्ययन के आधार पर तैयार किया गया है। लेख में शामिल सूचना व तथ्य आपकी जागरूकता और जानकारी बढ़ाने के लिए साझा किए गए हैं। किसी भी तरह की बीमारी के लक्षण हों अथवा आप किसी रोग से ग्रसित हों तो अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
पंजाब में ब्लैक फंगस की दस्तक: लुधियाना में पांच मरीजों की निकालनी पड़ी आंख By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦
सारडीएमसी के ईएनटी विभाग के हेड डॉक्टर मनीष मुंजाल ने बताया कि पिछले एक माह के दौरान उनके पास ब्लैक फंगस के दस मामले आ चुके हैं। 13 मई को उनके पास ब्लैक फंगस के चार मरीज आए।
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पंजाब में ब्लैक फंगस के केस सामने आए - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
पंजाब में भी ब्लैक फंगस ने दस्तक दे दी है। लुधियाना में बारह से ज्यादा लोग ब्लैक फंगस की चपेट में आ चुके हैं। इसमें ज्यादातर पीड़ितों का इलाज दयानंद मेडिकल कॉलेज में चल रहा है। वहीं पांच मरीज ऐसे हैं जिनके दिमाग तक फंगस पहुंच चुकी है। लुधियाना के डॉक्टर रमेश सुपर स्पेशियलिटी आई एंड लेजर सेंटर में अभी ब्लैक फंगस का एक मामला सामने आया है, मरीज की हालत को देखते उसे पीजीआई रेफर किया गया है।
डीएमसी के ईएनटी विभाग के हेड डॉक्टर मनीष मुंजाल ने बताया कि पिछले एक माह के दौरान उनके पास ब्लैक फंगस के दस मामले आ चुके हैं। 13 मई को उनके पास ब्लैक फंगस के चार मरीज आए, जिनकी आंख के नीचे, नाक और साइनस में ब्लैक फंगस थी। उनके फेफड़े खराब होने के कारण अभी आपरेशन नहीं किया जा सकता। पांच मामले नेत्र विभाग के पास आए थे, जिनका आपरेशन कर आंख निकालनी पड़ी। न्यूरो विभाग में भी लगभग ऐसे चार मामले आ चुके हैं। अभी तक जितने भी लोगों में ब्लैक फंगस मिला है, वह सभी कोरोना मरीज रह चुके हैं।
कोरोना को हरा चुके मरीजों को अपना शिकार बना रहा ब्लैक फंगसफोर्टिस अस्पताल लुधियाना में नेत्र रोग विभाग की एसोसिएट कंसल्टेंट डॉ. शैफी बैदवालने बतातीं हैं कि कोरोना संक्रमण शरीर के हर अंग को प्रभावित करता है। आंखों पर इसका ज्यादा विपरीत प्रभाव सामने आ रहा है। कोरोना को हरा चुके मरीजों को यह अपना शिकार बना रहा है। इससे व्यक्ति के देखने की क्षमता खत्म हो जाती है। यह बीमारी कोरोना से रिकवरी के कई सप्ताह बाद हो सकती है। मिट्टी, पौधे, खाद, फल और सब्जियों में सड़न होने के कारण ब्लैक फंगस वायरस पैदा हो रहा है। यह वायरस सेहतमंद व्यक्ति की नाक, बलगम में मौजूद हो सकता है। जिन लोगों का पाचन तंत्र कमजोर होता है, उन पर जल्दी से हमला करता है। कॉर्टिकोस्टेराइड थैरेपी ले रहे और आईसीयू में वेंटिलेटर पर चल रहे मरीजों में इस इंफेक्शन के होने की संभावना ज्यादा रहती है। माना जा रहा है कि कोविड-19 के गंभीर मरीजों के इलाज में जीवन रक्षक के तौर पर उपयोग किए जा रहे स्टेरायड की वजह से इस इंफेक्शन की शुरुआत हो रही है। यह स्टेरायड फेफड़ों की सूजन को कम करता हैं, लेकिन इससे इम्युनिटी भी कम हो रही है। जब फंगस पैरा नेसल साइनस म्यूरोसा पर हमला करता है तो यह दिमाग तक भी पहुंच जाता है।नाक के शुष्क होने पर उसमें से खून बहना और सिरदर्द इसके आम लक्षण हैं। नर्म कोशिकाओं और हड्डी में घुसने पर इस इंफेक्शन के कारण स्किन पर काले धब्बे बनने लगते हैं। इसके साथ ही आंखों में दर्द और सूजन, पलकों का फटना व धुंधला दिखना भी ब्लैक फंगस के संकेत हो सकते हैं। इससे मरीज की मानसिक हालत में बदलाव आने के साथ-साथ उसे दौरे भी पड़ सकते हैं। गंभीर होने पर मरीज की जान बचाने के लिए उसकी आंख को हटाना जरूरी हो जाता है। ऐसी स्थिति में पहुंचने पर मरीज की देखने की शक्ति को नहीं बचाया जा सकता।
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