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क्यों आया कोरोना दुबारा और कब तक रहेगा कोरोना ?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब2020 के शुरू में कोरोना की शुरुआत हुई थी । तब मैंने शनि के मकर राशि में प्रवेश की वजह से होने वाले परिणामों के बारे में न सिर्फ अपनी वेबसाइट पर लिखा था बल्कि कोरा पर भी लिखा था और यह अभी भी मेरी साइट ब्लॉगर covid 19 पर अंग्रेजी में मौजूद है ।मूलतः शनि मकर राशि में आने पर जनता को किसी न किसी तरह से त्रस्त रखता है। कारण आंतरिक अशांति , गृहयुद्ध, सूखा, बाढ़, भूकम्प , टिड्डी आदि कीटों से फसलों की हानि और उससे जनित अकाल , महामारी आदि कुछ भी हो सकता है और यह विश्वव्यापी होता है ।शनि मकर या किसी भी राशि में करीब 30 महीने रहता है और हर 30 साल बाद आता है । अभी यह 24 जनवरी 2020 से आया है और 29 अप्रैल 2022 तक रहेगा । इससे पहले यह 1990 से 1993 में आया था और उससे भी पहले 1961–63 में आया था .याद करें 1990–1993 में क्या क्या हुआ था ।उन दिनों देश में ढीली ढाली गठबंधन सरकार थी और आर्थिक स्थिति अब के पाकिस्तान जैसी थी । 1991 में देश को सोना गिरवी रखकर आयात करना पड़ा था । मई 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद बनी नरसिम्हाराव की सरकार को देश में आर्थिक उदारीकरण करना पड़ा क्योंकि देश की आर्थिक स्थिति पूरी तरह तबाह थी । इसी दौरान आडवाणी की रथयात्रा , मंडल कमीशन , हिन्दू मुस्लिम दंगे , 6 दिसम्बर 1992 की अराजकता और उसके बदले में 1993 के मुम्बई बम्ब ब्लास्ट के अलावा आरक्षण समर्थक और विरोधी आंदोलन भी इसी दौर में हुए थे ।भारत से बाहर अमेरिका , इराक -कुवैत का युद्ध , तेल की बढ़ी कीमतें इसी दौर में हुईं थीं ।इससे पहले 1961–1963 में देश ने चीन का आक्रमण देखा । देश में अकाल की स्थिति भी इस दौर में थी । क्यूबा का मिसाइल संकट ,सोवियत संघ -अमेरिका का तनाव भी इसी कालखंड में था ।इससे पहले 1931–33 में विश्वव्यापी मंदी चल रही थी ।सिर्फ शनि मकर राशि में हो तो यह फल होते ही हैं इसलिए 2020–22 के लिए भी मैंने इन्हीं परिणामों की सम्भावना 2019 के अंत होते समय लिखी थी ।2020 के आरंभ होते होते कोरोना महामारी की शुरुआत हो गयी थी । मेरे पास अनेक फोन आने शुरू हो गए थे कि यह कब तक रहेगी । बार बार उत्तर देने की जगह मैंने अपने पहले पेज पर इसका टाइम टेबल लगा दिया था जो अभी भी मौजूद है ।अब तक के शनि के मकर राशि में गोचर के परिणाम हम शाहीन बाग़, किसान आंदोलन ,गलवां में चीनी आक्रमण , टिड्डी दल के आगमन , अर्थव्यवस्था की दुर्गति, कोरोना महामारी , किसान आंदोलन के रूप में देख चुके हैं ।मोदी सरकार जब भी किसी आंदोलन में फंसती है भगवान दूसरी विपदा भेज कर उसे उबार लेती है ☺️☺️☺️इस बार का कोरोना किसान आंदोलन से मुक्ति देगा , पिछली बार शाहीन बाग से मिली थी।लेकिन इस बार शनि मकर राशि में 1990–93 की तरह अकेला नहीं था । वहां गुरु बृहस्पति भी अप्रैल 2020 से आ जा रहे थे ।यहां पर ध्यान देने की बात यह है कि जब भी गुरु किसी ग्रह के समीप आता है उसी राशि में तो पाप ग्रह अपने दुष्प्रभाव कम कर देता है और जब वह गुरु से दूर चला जाता है तो उसके दुष्प्रभाव बढ़ जाते हैं ।2020 और 2021 में निम्न समयांतराल में गुरु शनि के नज़दीक और दूर , वक्री और मार्गी होने से होता रहा या होता रहेगा ।30 मार्च 2020 से गुरु ने मकर राशि में प्रवेश किया और मार्गी गति से 15 मई 2020 तक शनि से सिर्फ 3 अंश की दूरी पर था । इस समय ज्यादातर देश लाक डाउन में थे और देश में कोरोना नियंत्रण में था ।15 मई 2020 से गुरु वक्री (उल्टी) गति से चलना शुरू किया और शनि से दूर हटने लगा । ऐसा 4 महीने तक चला और यह हर साल चार महीने वक्री रहता है । और एक जुलाई 2020 को गुरु वक्री गति से मकर राशि को छोड़कर वापस धनु राशि में आ गया । 15 मई 2020 से देश भर में महानगरों से लोग पैदल चल कर गांव पहुंचने लगे जो जून अंत तक चला और फिर जुलाई से सितंबर तक जब शनि मकर राशि में अकेला और वक्री था , तब देश में कोरोना की वजह से सबसे ज्यादा लोग बीमार हुए ।सितंबर 2020 के अंत में गुरु जो केतु के साथ वक्री था , पुनः सीधी चाल से चलकर शनि की तरफ बढ़ना आरम्भ हुआ । इसी समय केतु भी गुरु को धनु में छोड़कर वृश्चिक राशि में गया । इन दोनों कारणों से कोरोना की स्थिति में अक्टूबर 2020 से सुधार चालू हुआ । 20 नवम्बर को यह पुनः शनि की राशि में प्रविष्ट हुआ और 20 दिसम्बर 2020 को शनि के अंश तक पहुंच गया । इसी समय कोरोना के नए वैरिएंट की ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में खोज हुई जो बड़ी तेजी से फैल रहा था । गुरु के शनि के करीब होने से इसी समय विश्वभर में वैक्सीन के सफल परीक्षणों की घोषणा हुई और अमेरिका व अन्य देशों में वैक्सीन लगाने की शुरुआत हुई ।दिसम्बर 2020 के बाद से गुरु लगातार मकर राशि में शनि से दूर जा रहा था । तदनुसार दुनियां में कोरोना के नए वैरिएंट का फैलाव बढ़ने लगा था । अमेरिका, ब्रिटेन में बर्फबारी के मौसम में सबसे ज्यादा मौतें जनवरी में हो रहीं थीं । भारत में भी नया वैरिएंट पैर फैला रहा था लेकिन लोग निश्चिंत थे , सरकार ने टेस्टिंग और सतर्कता घटा दी थी , वैक्सीन आने की घोषणा से लोग अति निश्चिन्त हो गए, शादी बरात , घूमना , फिरना , शॉपिंग सब पहले जैसा हो गया। लोकल , मेट्रो , उड़ाने सब पहले की तरह चल रहा था जैसे कोरोना समाप्त हो गया हो । नतीजा यह हुआ कि नए वैरिएंट जो ज्यादा तेजी से फैल रहा था , उसको फैलने का पूरा मौका मिल गया ।नीचे 22 फरवरी 2021 के बैंगलोर का फोरम मॉल का एक कन्नड़ फ़िल्म के प्रोमोशन से जुड़ा चित्र है । इसमें ज्यादातर लोग बिना मास्क के एक दूसरे से चिपके खड़े हैं । यह चित्र मैंने खुद लिया था और लोगों को इस कमेंट के साथ भेजा था कि अब कोरोना फिर फैलेगा ।शनि से गुरु लगातार दूर हो रहा था और 6 अप्रैल 2021 को यह मकर राशि में शनि को अकेला छोड़कर कुम्भ राशि में प्रवेश कर गया ।अब शनि गुरु के नियंत्रण से सर्वथा मुक्त है , ठीक वैसे ही जैसे जुलाई 2020 से नवम्बर 2020 तक था । यह समय सबसे ज्यादा कोरोना से त्रस्त करेगा ।बाल वनिता महिला आश्रमकब कम होगा कोरोना ??15–20 जून के आसपास गुरु पुनः 4 महीने के लिए वक्री होगा और वह धीमी गति से शनि की ओर बढ़ेगा तो शनि पर कुछ नियंत्रण आएगा और कोरोना की मारक क्षमता कम होने लगेगी । सितंबर से नवम्बर तक यह पुनः शनि के साथ होगा तो उस समय तक कोरोना पर कुछ हद तक फिर नियंत्रण होगा ।20 नवम्बर 2021 से गुरु फिर से कुम्भ राशि में रहेगा तो अप्रैल 2022 तक कोरोना की तीसरी लहर का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा । लेकिन तीसरी लहर कमजोर होगी और लोग काफी हद तक वैक्सीनेटेड हो चुके होंगे तो इसका असर दूसरी लहर से कम होगा । उसके बाद कोरोना का मारक महत्व समाप्त हो जाएगा ।इसमें एक सहायक कारण केतु का वृश्चिक राशि और राहु का वृष राशि में होना भी है , जो भारत की लग्न पर गोचर है ।इसलिए भारत पर दूसरी कोरोना लहर का अप्रैल से अक्टूबर में ज्यादा असर होगा । यह गोचर भी अप्रैल 2022 में ही समाप्त होगा ।

2020 के शुरू में कोरोना की शुरुआत हुई थी । तब मैंने शनि के मकर राशि में प्रवेश की वजह से होने वाले परिणामों के बारे में न सिर्फ अपनी वेबसाइट पर लिखा था बल्कि कोरा पर भी लिखा था और यह अभी भी मेरी साइट ब्लॉगर covid 19 पर अंग्रेजी में मौजूद है ।

मूलतः शनि मकर राशि में आने पर जनता को किसी न किसी तरह से त्रस्त रखता है। कारण आंतरिक अशांति , गृहयुद्ध, सूखा, बाढ़, भूकम्प , टिड्डी आदि कीटों से फसलों की हानि और उससे जनित अकाल , महामारी आदि कुछ भी हो सकता है और यह विश्वव्यापी होता है ।


शनि मकर या किसी भी राशि में करीब 30 महीने रहता है और हर 30 साल बाद आता है । अभी यह 24 जनवरी 2020 से आया है और 29 अप्रैल 2022 तक रहेगा । इससे पहले यह 1990 से 1993 में आया था और उससे भी पहले 1961–63 में आया था .

याद करें 1990–1993 में क्या क्या हुआ था ।

उन दिनों देश में ढीली ढाली गठबंधन सरकार थी और आर्थिक स्थिति अब के पाकिस्तान जैसी थी । 1991 में देश को सोना गिरवी रखकर आयात करना पड़ा था । मई 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद बनी नरसिम्हाराव की सरकार को देश में आर्थिक उदारीकरण करना पड़ा क्योंकि देश की आर्थिक स्थिति पूरी तरह तबाह थी । इसी दौरान आडवाणी की रथयात्रा , मंडल कमीशन , हिन्दू मुस्लिम दंगे , 6 दिसम्बर 1992 की अराजकता और उसके बदले में 1993 के मुम्बई बम्ब ब्लास्ट के अलावा आरक्षण समर्थक और विरोधी आंदोलन भी इसी दौर में हुए थे ।

भारत से बाहर अमेरिका , इराक -कुवैत का युद्ध , तेल की बढ़ी कीमतें इसी दौर में हुईं थीं ।

इससे पहले 1961–1963 में देश ने चीन का आक्रमण देखा । देश में अकाल की स्थिति भी इस दौर में थी । क्यूबा का मिसाइल संकट ,सोवियत संघ -अमेरिका का तनाव भी इसी कालखंड में था ।

इससे पहले 1931–33 में विश्वव्यापी मंदी चल रही थी ।


सिर्फ शनि मकर राशि में हो तो यह फल होते ही हैं इसलिए 2020–22 के लिए भी मैंने इन्हीं परिणामों की सम्भावना 2019 के अंत होते समय लिखी थी ।

2020 के आरंभ होते होते कोरोना महामारी की शुरुआत हो गयी थी । मेरे पास अनेक फोन आने शुरू हो गए थे कि यह कब तक रहेगी । बार बार उत्तर देने की जगह मैंने अपने पहले पेज पर इसका टाइम टेबल लगा दिया था जो अभी भी मौजूद है ।

अब तक के शनि के मकर राशि में गोचर के परिणाम हम शाहीन बाग़, किसान आंदोलन ,गलवां में चीनी आक्रमण , टिड्डी दल के आगमन , अर्थव्यवस्था की दुर्गति, कोरोना महामारी , किसान आंदोलन के रूप में देख चुके हैं ।

मोदी सरकार जब भी किसी आंदोलन में फंसती है भगवान दूसरी विपदा भेज कर उसे उबार लेती है ☺️☺️☺️

इस बार का कोरोना किसान आंदोलन से मुक्ति देगा , पिछली बार शाहीन बाग से मिली थी।


लेकिन इस बार शनि मकर राशि में 1990–93 की तरह अकेला नहीं था । वहां गुरु बृहस्पति भी अप्रैल 2020 से आ जा रहे थे ।

यहां पर ध्यान देने की बात यह है कि जब भी गुरु किसी ग्रह के समीप आता है उसी राशि में तो पाप ग्रह अपने दुष्प्रभाव कम कर देता है और जब वह गुरु से दूर चला जाता है तो उसके दुष्प्रभाव बढ़ जाते हैं ।

2020 और 2021 में निम्न समयांतराल में गुरु शनि के नज़दीक और दूर , वक्री और मार्गी होने से होता रहा या होता रहेगा ।

  • 30 मार्च 2020 से गुरु ने मकर राशि में प्रवेश किया और मार्गी गति से 15 मई 2020 तक शनि से सिर्फ 3 अंश की दूरी पर था । इस समय ज्यादातर देश लाक डाउन में थे और देश में कोरोना नियंत्रण में था ।
  • 15 मई 2020 से गुरु वक्री (उल्टी) गति से चलना शुरू किया और शनि से दूर हटने लगा । ऐसा 4 महीने तक चला और यह हर साल चार महीने वक्री रहता है । और एक जुलाई 2020 को गुरु वक्री गति से मकर राशि को छोड़कर वापस धनु राशि में आ गया । 15 मई 2020 से देश भर में महानगरों से लोग पैदल चल कर गांव पहुंचने लगे जो जून अंत तक चला और फिर जुलाई से सितंबर तक जब शनि मकर राशि में अकेला और वक्री था , तब देश में कोरोना की वजह से सबसे ज्यादा लोग बीमार हुए ।
  • सितंबर 2020 के अंत में गुरु जो केतु के साथ वक्री था , पुनः सीधी चाल से चलकर शनि की तरफ बढ़ना आरम्भ हुआ । इसी समय केतु भी गुरु को धनु में छोड़कर वृश्चिक राशि में गया । इन दोनों कारणों से कोरोना की स्थिति में अक्टूबर 2020 से सुधार चालू हुआ । 20 नवम्बर को यह पुनः शनि की राशि में प्रविष्ट हुआ और 20 दिसम्बर 2020 को शनि के अंश तक पहुंच गया । इसी समय कोरोना के नए वैरिएंट की ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में खोज हुई जो बड़ी तेजी से फैल रहा था । गुरु के शनि के करीब होने से इसी समय विश्वभर में वैक्सीन के सफल परीक्षणों की घोषणा हुई और अमेरिका व अन्य देशों में वैक्सीन लगाने की शुरुआत हुई ।
  • दिसम्बर 2020 के बाद से गुरु लगातार मकर राशि में शनि से दूर जा रहा था । तदनुसार दुनियां में कोरोना के नए वैरिएंट का फैलाव बढ़ने लगा था । अमेरिका, ब्रिटेन में बर्फबारी के मौसम में सबसे ज्यादा मौतें जनवरी में हो रहीं थीं । भारत में भी नया वैरिएंट पैर फैला रहा था लेकिन लोग निश्चिंत थे , सरकार ने टेस्टिंग और सतर्कता घटा दी थी , वैक्सीन आने की घोषणा से लोग अति निश्चिन्त हो गए, शादी बरात , घूमना , फिरना , शॉपिंग सब पहले जैसा हो गया। लोकल , मेट्रो , उड़ाने सब पहले की तरह चल रहा था जैसे कोरोना समाप्त हो गया हो । नतीजा यह हुआ कि नए वैरिएंट जो ज्यादा तेजी से फैल रहा था , उसको फैलने का पूरा मौका मिल गया ।
  • नीचे 22 फरवरी 2021 के बैंगलोर का फोरम मॉल का एक कन्नड़ फ़िल्म के प्रोमोशन से जुड़ा चित्र है । इसमें ज्यादातर लोग बिना मास्क के एक दूसरे से चिपके खड़े हैं । यह चित्र मैंने खुद लिया था और लोगों को इस कमेंट के साथ भेजा था कि अब कोरोना फिर फैलेगा ।
  • शनि से गुरु लगातार दूर हो रहा था और 6 अप्रैल 2021 को यह मकर राशि में शनि को अकेला छोड़कर कुम्भ राशि में प्रवेश कर गया ।
  • अब शनि गुरु के नियंत्रण से सर्वथा मुक्त है , ठीक वैसे ही जैसे जुलाई 2020 से नवम्बर 2020 तक था । यह समय सबसे ज्यादा कोरोना से त्रस्त करेगा ।
  • बाल वनिता महिला आश्रम

कब कम होगा कोरोना ??

15–20 जून के आसपास गुरु पुनः 4 महीने के लिए वक्री होगा और वह धीमी गति से शनि की ओर बढ़ेगा तो शनि पर कुछ नियंत्रण आएगा और कोरोना की मारक क्षमता कम होने लगेगी । सितंबर से नवम्बर तक यह पुनः शनि के साथ होगा तो उस समय तक कोरोना पर कुछ हद तक फिर नियंत्रण होगा ।

20 नवम्बर 2021 से गुरु फिर से कुम्भ राशि में रहेगा तो अप्रैल 2022 तक कोरोना की तीसरी लहर का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा । लेकिन तीसरी लहर कमजोर होगी और लोग काफी हद तक वैक्सीनेटेड हो चुके होंगे तो इसका असर दूसरी लहर से कम होगा । उसके बाद कोरोना का मारक महत्व समाप्त हो जाएगा ।

इसमें एक सहायक कारण केतु का वृश्चिक राशि और राहु का वृष राशि में होना भी है , जो भारत की लग्न पर गोचर है ।इसलिए भारत पर दूसरी कोरोना लहर का अप्रैल से अक्टूबर में ज्यादा असर होगा । यह गोचर भी अप्रैल 2022 में ही समाप्त होगा ।

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महाराष्ट्रातल्या कोणत्याही शहराची, खरंतर परिस्थिती पाहाता देशातल्या कोणत्याही शहराची सद्यस्थिती आहे. तुम्ही अहमदनगरचा तो व्हीडिओ पाहिला असेल जिथे एकाच चितेवर सहा जणांना अग्नी दिला. किंवा देशाच्या कोणत्यातरी नदीच्या किनारी जमिनीवरच मृतदेह ठेवून त्याभोवती लाकडं रचून पेटवलेलंही पाहिलं असेल, अगदी परवा समोर आलेला लखनऊच्या स्मशानातला अनेक मृतदेह जळतानाचा व्हीडिओही नजरेसमोरून गेला असेल. तसाच माझा एक अनुभव.By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबकोव्हिडने मरणाऱ्या लोकांचे आकडे रोज समोर येतात, थोडं हळहळून, चुकचुकून सोडून देतो आपण, कामाला लागतो. दुसऱ्या दिवशी परत आकडे येतात. तेच घडतं, तोपर्यंत जोपर्यंत ही काळाची चाहूल तुमच्या घरात लागत नाही.अचानक आकडे फक्त आकडे न राहाता आपल्या जगण्याची धावपळ बनते. काहीतरी शाप असावा माणसाला की आपला माणूस मरत नाही तोवर काही सिरीयसली घ्यावंसच वाटत नाही. तशीच गर्दी बाहेर वाढत असते.आभाळच फाटलं त्याला कुठे कुठे ठिगळं लावणार असं माझी आजी म्हणायची.कोरोनाने मरणारा माणूस कसा मरतो माहितेय? श्वास कोंडून, की शेवटी त्याला जगण्यासाठी एक श्वास घेणं मुश्कील व्हावं. जो/जी गेले ते तर सुटतात, मागे राहिलेल्यांचं काय?जे कोरोनाने जातात ना त्यांचे जवळचे, रक्ताच्या नात्याचे सहसा त्याच आजाराने ग्रस्त असतात. काही तर हॉस्पिटलमध्येच असतात. आपल्या माणसाला शेवटचा निरोप द्यायलाही त्यांना येता येत नाही. मरण स्वस्त तर झालंच आहे, एकटंही झालंय.मी पाहिलंय स्मशानभूमीत. एकाशेजारी एक सहा-सात चिता जळत असतात आणि दर तिसऱ्या मिनीटाला एक बॉडी येत असते. माझ्या नात्यातली व्यक्ती गेली तेव्हा माझ्या शहरात कोरोनाने 40 मृत्यू झाले होते.सविस्तरच सांगायला हवं कसं होतं ते. तुमचं शहर मोठं असेल आणि तुम्ही शहरात दोन स्मशानभूमी असण्याइतके लकी (!) असाल तर एक स्मशानभूमी कोव्हिडसाठी राखीव असते. दिवसभरात गेलेल्या लोकांच्या बॉडी दुपारनंतर रिलीज व्हायला सुरूवात होते आणि आग धगधगायला लागते. शववाहिका येत असतात, चिता पेटत असतात. जो मेलाय त्याच्या जवळचं स्मशानभूमीत कोणीच नसतं. ते ऑलरेडी एकतर अॅडमिट असतात नाहीत क्वारंटाईन असतात. मेलेल्याला आग लावायला रक्ताचं नसतं कोणी.नवरा, बायको, संसार, मुलं कोणीच नसतात. माझ्या नातेवाईकाच्या बाबतीत असंच झालं. लांबची चार माणसं सोडून कोणीच नव्हतं. अग्नी कोणी दिला, कोणाच्या लक्षातही नाही. तरी जी माणसं आली त्यांचं कौतुक मानायला पाहिजे की ती आली तरी. नाहीतर महानगरपालिकेची माणसं कुठे जाळतात, कशी जाळतात पत्ता नाही लागत. त्यांना तरी का दोष द्यावा? संपत नाहीये मृत्यूचा खेळ. मेलेल्या माणसाला प्लास्टिकमध्ये गुंडाळलेलं असतं, घरी आणण्याचा प्रश्नच नसतो. थेट स्मशानात नेतात. जाळण्यासाठीही टोकन घ्यावं लागतं. काही ठिकाणी 24-36 तासांचा वेटिंग पीरियड आहे म्हणे. आमच्या माणसाला निदान स्मशानात आणल्या आणल्या आग नशिबी आली.हॉस्पिटलमध्ये माणूस गेला रे गेला की त्याला बेडवरून उतरवायची घाई सुरू होते. रडायला तरी कोणाला आणि किती वेळ असणार? रिकामा (!) झालेला बेड बाहेर जगण्या-मरण्याच्या अध्येमध्ये टांगलेल्या माणसाला द्यायचा असतो. Life should trump death.कमीत कमी ज्या जवळच्या माणसांना आपल्या माणसांचे अंतिम संस्कार करता येतात ते नशीबवान (!) म्हणायचे. खांदा द्यायचा नसतोच, पण निदान अग्नी द्यायला, शेवटचा निरोप द्यायला चार माणसं यावीत म्हणून प्रयत्नांची पराकाष्ठा करावी लागते. कोव्हिडने गेलेल्या माणसाचे अंतिम संस्कार करायला कोण परकी माणसं येणार? तरी काही येतात, घाबरत घाबरत का होईना कसेबसे सोपस्कार पार पडतात.एका पत्रकार मित्राने सांगितलेला किस्सा. त्याचे वडील गेले मागच्या वर्षी कोरोनाने, लहानशा गावात. खांदा द्यायला माणूस नव्हता. याने एकट्याने खांद्यावर बॉडी नेऊन चितेवर ठेवली, अग्नी दिला आणि चिता शांत व्हायची वाट पाहात बसला. एकटाच.आपला माणूस मरतो तेव्हा काय होतं माहितेय? कोणी नसतं तिथे... उद्या अस्थी गोळा करायला कोण येणार, पुन्हा ही रिस्क कोण घेणार म्हणून तू-तू-मी-मी चालत असते. पुढचे तुमच्या आठवणीत असतील एखाद्या चांगल्या माणसाच्या मयतीला आलेली शेकडो माणसं. इथे शेकडो माणसंच मृत्यूच्या दारात उभी असतात. ब्राझीलमधला एक फोटो पाहिला काही दिवसांपूर्वी. कोव्हिड वॉर्डमध्ये अॅडमिट असलेल्या पेशंटचा हात गरम पाणी भरलेल्या दोन रबरी ग्लोव्हमध्ये ठेवला आहे. माणसाचा स्पर्शच नाही तरी काहीतरी तरी जाणीव असावी म्हणून. इतका एकटेपणा असतो.हा मेल्यानंतरी पाठ सोडत नाही. जो मेलेल्यासाठी रडतोय त्याचीही पाठ हा एकटेपणा सोडत नाही. ना मेलेल्याला खांदा देता येतो, ना मांडी. ना त्यांच्या जाण्यावरून कोणाच्या गळ्यात पडून धाय मोकलून रडता येतं.बाल वनिता महिला आश्रमकोणी रडत तर खांद्यावर हात टाकून सांत्वन करायला कोणी पुढे येत नाही. फेसशिल्ड, मास्कमध्ये लपलेले चेहरे. दोन-दोन मास्क लावल्यामुळे जड झालेला श्वास आणि आगीच्या धगीमुळे लागलेल्या घामाच्या धारा यात अश्रू कुठे वाहून जातात काहीच कळत नाही. मुळात कोण कोणासाठी रडतंय, त्याहीपेक्षा गेलेल्या माणसासाठी रडायला इथे कोणी आहे तरी का हे कळायला जागा नसते.या एकटेपणाचं काय करावं?समोर जळणाऱ्या सहा-सात चितांच्या ज्वाळात नंतर हेही कळत नाही की आपल्या माणसाला कुठे अग्नी दिला होता. चौथऱ्यावर गेलं की धग लागते फक्त, सगळीकडून जळणाऱ्या चितांची. स्मशानात एरवी भयाण वाटतं म्हणे, एकटीच चिता जळत असते बाकी अंधार.आता आपल्या माणसाचं चितेत जळण्यासाठी कधी नंबर येईल या विवेचंनेत थांबलेली माणसं, स्मशानभूमीत काम करणाऱ्या माणसांची यंत्रासारखी लगबग, सतत येणाऱ्या अँब्युलन्स, समोर धडाडणाऱ्या चिता आणि त्यांचा सगळीकडे पसरलेला प्रकाश फक्त भेसूर वाटतो.अर्धा किलोमीटर अंतरावरून कळतं पुढे स्मशानभूमी आहे इतका त्या अग्नीचा प्रकाश पसरलेला असतो. भीती फक्त माणसाच्या हतबलतेची वाटते.बाकी कोणतं वर्ष पनवती नसतं, काळ पनवती नसतो, आपण माणसंच पनवती असतो.(टीप : बीबीसी मराठीच्या सदस्याने आपला अनुभव या ब्लॉगमध्ये मांडला आहे. त्यांच्या इच्छेखातर नाव देत नाही आहोत न्यूज मराठीचे सर्व अपडेट्स मिळवण्यासाठी आम्हाला YouTube, Facebook, Instagram आणि Twitter वर नक्की फॉलो करा.

महाराष्ट्रातल्या कोणत्याही शहराची, खरंतर परिस्थिती पाहाता देशातल्या कोणत्याही शहराची सद्यस्थिती आहे. तुम्ही अहमदनगरचा तो व्हीडिओ पाहिला असेल जिथे एकाच चितेवर सहा जणांना अग्नी दिला. किंवा देशाच्या कोणत्यातरी नदीच्या किनारी जमिनीवरच मृतदेह ठेवून त्याभोवती लाकडं रचून पेटवलेलंही पाहिलं असेल, अगदी परवा समोर आलेला लखनऊच्या स्मशानातला अनेक मृतदेह जळतानाचा व्हीडिओही नजरेसमोरून गेला असेल. तसाच माझा एक अनुभव. By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब कोव्हिडने मरणाऱ्या लोकांचे आकडे रोज समोर येतात, थोडं हळहळून, चुकचुकून सोडून देतो आपण, कामाला लागतो. दुसऱ्या दिवशी परत आकडे येतात. तेच घडतं, तोपर्यंत जोपर्यंत ही काळाची चाहूल तुमच्या घरात लागत नाही. अचानक आकडे फक्त आकडे न राहाता आपल्या जगण्याची धावपळ बनते. काहीतरी शाप असावा माणसाला की आपला माणूस मरत नाही तोवर काही सिरीयसली घ्यावंसच वाटत नाही. तशीच गर्दी बाहेर वाढत असते. आभाळच फाटलं त्याला कुठे कुठे ठिगळं लावणार असं माझी आजी म्हणायची. कोरोनाने मरणारा माणूस कसा मरतो माहितेय? श्वास कोंडून, की शेवटी त्याला जगण्यासाठी एक श्वास घेणं मुश्कील व्हावं. जो/ज...